रोज़ाना सबक सिखाता हूँ नाखूनों से तुम्हें ऐ मेरे ज़ख्मों तुम मुझे उस्ताद कहा करो
रंजिश हो या मुहब्बत हो,हक के साथ कहा करो जब भी मुझ से कुछ कहो बेहिसाब कहा करो भले छाँव ना रही पर कोई घोंसला तो है उनपे उन सूखे दरख्तों को भी तुम शादाब कहा करो मैं ताकता नहीं नज़रों से इबादत करता हूँ तेरी मेरी नज़रों को ना तुम गलत-अंदाज़ कहा करो हर किसी के बस में नहीं आग की बाज़ी खेलना इश्क़ में लुटे हर शख़्स को जाँबाज कहा करो ढहने के बाद भी बसर हैं रानाईयाँ मुझ में मुझ खंडहर को कभी तो आबाद कहा करो उदासी से कहोगे तो मामूली समझे जाओगे पहले हँसा करो फिर कोई फ़रियाद कहा करो मुझ पे कहर ढाती है तेरी उससे गुफ़्तगू तुम्हें रक़ीब से जो कहना है मेरे बाद कहा करो मेरी सारी ग़ज़ल आँसू की स्याही से लिखी हैं मेरे रोने पे तुम भी तो लाजवाब कहा करो
Literature
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Dec 2023 11:20 AM
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