महाशिवरात्रि-कुछ सोच कुछ चेतना प्रभु शंकर ओर शिवरात्रि के बारे में कोई भी विचार प्रकट करना मानो ऐसा है जैसे आप सम्पूर्ण ब्राम्हण की व्याख्या करना चाहते हो जो कि नामुमकिन है शिव ही शक्ति है अर्थात शक्ति ही शिव है। जो इस सम्पूर्ण ब्राम्हण के हर कण कण में उपस्थित है जो श्रष्टि के कर्ता है उनका अस्तित्व शक्ति में निहित है प्रकृति और मनुष्य के बीच सामंजस्य बनाये रखना ही शिवशक्ति का मुख्य कार्य है । अर्थात शिव को जीवित प्राणियों ओर मनुष्यो का प्रतीक ओर शक्ति को प्रकृति का प्रतीक बताया गया है। भगवान शिव को विनाश,ध्यान ओर पुनर्जनन का देवता माना गया है ओर शक्ति, ऊर्जा और रचनात्मकता की देवी है। अर्थात यह कह सकते है कि सर्जन ओर विनाश तथा शांति और गति के बीच का संतुलन ही शिवशक्ति है। सनातन अर्थात हिन्दू धर्म मे भगवान शंकर को समस्त देवताओं में सर्वश्रेष्ठ ओर सर्वशक्ति शाली माना गया है क्यो की शिव सर्वस्त्व है। वह निर्माता, संरक्षक,संहारक,प्रकट कर्ता ओर विलुप्त होने और करने वाले है। वह सृजक ओर नष्ट कारक भी है। इसलिये वह आदिदेव है जो स्वयम से उत्तपन हुए है और स्वयम में विलीन हो सकते है। अनेकानेक कारणों ओर प्रमाणों में से एक उनका परिवार भी सर्वशक्ति शाली बनने बनाने का एक कारण है ( माँ देवी पार्वती, भगवान श्री गणेश, भगवान कार्तिकेय, नदी गण, सिंह गण, मूषकगण , मोर गण, सर्प, स्वान आदि ) भगवान शंकर अर्द्धनारीश्वर है यह रूप शिव और शक्ति के एक होने की व्याख्या करता है, यह रचनात्मकता ओर उत्पादन शक्ति को चिन्हित करता है, यह स्त्री और पुरुष के सिद्धांतों को प्रदर्शित करता है जिन्हें अलग नही किया जा सकता, यह सम्पूर्ण ब्राम्हण की विभिन्न विरोधी शक्तियों की एकता का प्रतीक है मान्यता है कि भगवान शंकर की उत्पती भगवान विष्णु जी के तेज से हुई थी जब भगवान विष्णु और भगवान ब्रम्हा जी के मध्य श्रेष्ठता को साबित करने के लिये युद्ध चल रहा था तब एक जलते हुए स्तम्भ से भगवान शिव प्रकट हुए जिससे वह हमेशा योगमुद्रा धरना किये होते है क्यो की वह स्तम्भ से जुड़ते है भगवान शिव को त्रिदेव भी कहा जाता है उन्हें यह तीसरी दृष्टि पवन से प्राप्त हुई जो विनाश के समय खुलती है जो सर्वप्रथम कामदेव को भस्म करने के उद्देश्य से खुली थी। भगवान शंकर के तीनों नेत्र विभिन्न गुणों को प्रदर्शित करते है - दाया नेत्र सत्वगुण, बाया नेत्र रजोगुण ओर तीसरा नेत्र तमोगुण प्रदर्शित करता है तृतीय नेत्र का मुख्य कार्य श्रष्टि को अपरिहार्य आपदा से बचना है शिव पुराण के अनुसार शिव-शक्ति का संयोग ही परमात्मा है शिव की जो पराशक्ति है उससे चितशक्ति प्रकट होती है चितशक्ति से आनंद शक्ति का प्रादुर्भाव होता है और आनंदशक्ति से ज्ञानशक्ति ओर ज्ञानशक्ति से पाचवी क्रियाशक्ति प्रकट हुई।इन्ही से निवर्ती आदि कलाएं पैदा हुई। शिवशक्ति से नाद ओर आनंदशक्ति से बिंदु का सृजन होना बताया गया है। ज्ञानशक्ति से पाचवा स्वर 'उ' कार आया ,इच्छाशक्ति से 'म' कार प्रकट हुआ है और क्रियाशक्ति से 'अ' कार पैदा हुआ अतः इस प्रकार प्रणव ( ॐ ) की उत्तपत्ति हुई । शिव से ही ईशान उत्पन हुआ है और ईशान से ही मिथुन पंचक की उत्पत्ति हुई है इनमे पहला मिथुन आकाश, दूसरा वायु, तीसरा अग्नि, चौथा जल और पाचवा मिथुन पृथ्वी है। हर चंद्रमास का चोधवा (14) दिन अथवा अमावस्या के पूर्व का एक दिन शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। एक कैलेंडर वर्ष में आने वाली सभी शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है जो फरवरी-मार्च माह में आती है शिवरात्रि माह का सबसे अंधकारपूर्ण दिवस होता है। मान्यता अनुसार इस रात्रि ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार विधमान होता है कि हर मनुष्य के अंदर की ऊर्जा स्वतः ही प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर जाने लगती है। अर्थात प्रकृति स्वयम है मनुष्य को आध्यात्मिक शिखर तक जाने में सहायक होती है।महाशिवरात्रि भगवान शिव का एक प्रमुख पर्व है जो माघ फागुन कृष्णपक्ष चतुदर्शी को मनाया जाता है। @ माना जाता है कि श्रष्टि का प्रारम्भ इसी दिन हुआ था, इसी दिन श्रष्टि का आरम्भ अग्निलिग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ था। @ इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती से हुआ था। @ इसी दिन समुद्रमंथन से उत्तपन्न विष का सेवन भगवान शंकर ने किया और अपने कंठ में विष को धरना किया जिससे वह नीलकंठ कहलाये,इस विष को सेवन कर कर उन्होंने सम्पूर्ण श्रष्टि ओर देवताओं की रक्षा की। @ इसी दिन देवी गंगा के उग्र ओर तीव्र प्रवाह को अपनी केश जटाओं में धारण कर के पृथ्वी और सम्पूर्ण जीवन को नष्ट होने से बचाया अतः इसी कारणवश शिवलिग का निरंतर जलाभिषेक किया जाता है। @ इसी दिन भगवान शिव ने अपने सदाशिव निराकार रूप से लिंग स्वरूप लिया। शिवपरिवार अपने रूप में सम्पूर्ण श्रष्टि को दर्शाते हैं जैसे हम समझने का थोड़ा प्रयत्न करें तो हमे ज्ञात होगा कि परिवार के गणों (वाहक) में अनेकानेक विविधताएं,भिन्नताएं ओर विपरित भावनाएं छुपी है जैसे प्रभु शिव जी का गन नंदी , माता पार्वती के गण सिंह का परस्पर वीरोधी है और भोजन स्वरूप है वैसे है श्री गणेश का गण मुश्क (चूहा) भगवान कार्तिकेय के गण मोर का भी परस्पर विरोधी ओर भोजन स्वरूप है ऐसे ही मूषक ओर सर्प भी मोर के भोजन स्वरूप है पर फिर भी इतनी मतभेद ओर भिन्नता के बाद भी शिव परिवार में परस्पर समरसता, सहिष्णुता, ओर प्रेम का संचार देखने को मिलता है और यह संदेश वह सम्पूर्ण विश्व ओर श्रष्टि को देते है " हर हर महादेव "
नारी की केश सज्जा दर्पण रिश्तों का
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09
Mar 2024 5:31 PM
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