तेरा मेरा साथ रहे....  सुनो, अब तो कम से कम मेरे लिए थोड़ा समय निकाल लो, हमेशा अपने काम में लगी रहती हो, छोड़ो ये कपड़े तहाना और बंद करो अलमारी।रवि ने वसुधा को पीछे से अपनी बाहों में भरते हुए उनके गुलाबी गालों को चूमते हुए कहा। वसुधा को रवि की ऐसी बातें सुनकर अंदर ही अंदर गुदगुदी सी हो रही थी। उनके दिल की तेज धड़कनों ने उन्हें अपने बीते जमाने याद दिला दिए। जब उनकी रवि से शादी हुई थी और वो नई नवेली दुल्हन बन उनके घर आंगन में आईं थीं। तब भी उसकी धड़कनें रवि के एक प्यार भरे छुअन से ऐसे ही शोर करती थीं जैसे आज कर रही थीं। उसके गुलाबी गाल शर्म से और गुलाबी हो गए थे। आज एक बार फिर अपने पति का यूं खुद पर इतना प्यार देख उसे उन लम्हों को जीने का मन कर रहा था जिन्हें उसने अपने बच्चों और घर जिम्मेदारियों के चलते बहुत पीछे छोड़ दिया था। पर फिर खुद को संभालते हुए उसने बिना ही मुड़े रवि को मना करने की कोशिश की। पर आज तो रवि मानो पूरी ज़िद पे थे। वो वहीं वसुधा के पीछे खड़े उनके पलटने का इंतजार करने लगे। वसुधा जानती थी कि रवि एक बार जिस बात पर अड़ जाते हैं फिर उसे मनवा कर ही दम लेते हैं। कुछ सोच वसुधा अपनी अलमारी बंद कर उनकी तरफ मुड़ी और समझाते हुए उन्हें कहा– मैं आपको कब समय नहीं देती हमेशा आपके साथ रहती हूं हर कदम पर आपके साथ खड़ी रहती हूं। जब आप जो बोलते हो आपकी बात सरांखों पर होती है। फिर भी आप ऐसे बोलते हो। वसुधा ने थोड़ा मुंह लटकते हुए कहा। हां मुझे पता है तुम हमेशा मेरे साथ खड़ी रहती हो मेरी हर बात मानती हो। पर पति पत्नी का क्या बस यही रिश्ता होता है? इसके अलावा और कुछ नही? वसुधा का मुंह ऊपर अपनी तरफ करते हुए रवि ने पूछा। वसुधा ने अंजान बनते हुए कहा और क्या होता है मुझे तो नहीं पता आप ही बता दो। उसके चेहरे ही शरारती हंसी रवि को समझ आ रही थी। उन्होंने और थोड़ा छेड़ते हुए वसुधा को अपनी ओर खींचा और प्यार से निहारते हुए कहा तुम्हे नहीं पता और कोई रिश्ता भी होता है पति पत्नी का। वसुधा जी की नजरें शर्म से नीचे झुक गईं। इससे पहले की रवि जी कुछ करते बाहर से उनकी नन्ही पोती पीहू दादी, दादी की रट लगाते हुए चली आ रही थी। वसुधा जी ने जैसे ही सुना उन्होंने रवि जी को तेज धक्का दे कर खुद से दूर किया साथ ही अपने आप को ऐसे संभाला जैसे कुछ हुआ ही न हो। रवि जी को वसुधा का ये बर्ताव बिलकुल अच्छा नहीं लगा मगर वो बिना कुछ कहे ही वहां से चले गए। वसुधा जी को भी मन ही मन अपने बर्ताव पर गुस्सा था मगर पीहू को देखते हुए उन्होंने भी उन्हे जाने दिया। ***************** वसुधा और रवि जी का भरा पूरा परिवार है। तीन बेटे और बहुएं हैं एक बेटी दामाद है जो दूसरे शहर रहते हैं मगर जब कभी मिलने आ जाते हैं, और सबके बच्चे हैं जिसमे सबसे छोटे बेटे की बेटी है पीहू। क्यूंकि पीहू सबसे छोटी है तो वो सबकी प्यारी है और अपने दादी दादा की तो दुलारी है। उसके बिना तो वसुधा और रवि की सुबह ही नहीं होती ना ही शाम। वो पूरा दिन अपनी दादी को अपने पीछे पीछे घुमाती है। उन्हें नाश्ते से लेकर रात के खाने के लिए भी वही हाथ पकड़ कर लाती है और उन्ही के साथ खाती है। आज भी नन्ही पीहू रात के खाने के लिए अपने दादा दादी को बुलाने गई, जिसमे दादी तो आ गईं मगर दादा का पता नहीं। सब लोग पीहू से उन्हें बुलाने को कहते मगर वो हर बार सबको मना कर देती। थक के वसुधा जी खुद अपने कमरे में गईं जहां रवि जी अपने बेड पर लेटे अपनी नॉवेल पढ़ रहे थे। वसुधा जी ने उनकी नॉवेल साइड में रखते हुए उन्हें खाना खाने का आग्रह किया। साथ ही अपने किये की माफी मांगते हुए उन्होंने फिर उन्हे समझाते हुए कहा, अगर इस उमर में हम ऐसे करेंगे तो बच्चे और घर वाले क्या कहेंगे? देखो तो इन बुड्ढा बुढ़िया को अभी जवानी चढ़ी है।शर्म भी नही आती। वैसे भी जब कभी आप मेरा हाथ सबके सामने पकड़ते हो तो सबकी नजरें सिर्फ हम दोनो पर ही होती हैं।और उनकी नजरें   ही मुझे पानी पानी कर देती है। रवि वसुधा की बात ध्यान से सुनते हुए मुस्कुराने लगे। उन्हे यूं मुस्कुराता देख वसुधा ने अपनी नजरें नीचे कर ली। देखो कोई क्या सोचता है, मुझे फर्क नहीं पड़ता। तुम क्या सोचती हो मुझे उससे मतलब है। आज देखो हमारे बच्चे अपने बच्चों में व्यस्थ है और साथ ही अपना जीवन भी अपनी मर्जी से जी रहे हैं। जब कभी उन्हें जरूरत होती तो उसके लिए हम तो हैं ही। मगर उन्होंने अपने बच्चों या हमारे लिए अपना जीने का तरीका नहीं बदला न ही अपनी भावनाओं को एक दूसरे के लिए खत्म कर रहे हैं। तुम जब मां बनी तो तुमने मां के तो सारे फर्ज़ निभाए मगर पत्नी का धर्म भूल गई। मैं तुम्हे दोष नही देता कि तुम एक अच्छी मां हो पर इन सबके चक्कर में हम अपना ही जीवन जीना भूल गए। सोचा जब बच्चे बड़े हो जायेंगे तब हमे अपनी मर्जी से जीने का मौका मिलेगा मगर तुम तो अब भी व्यस्थ हो। तब बच्चे थे आज नाती पोते में लगी रहती हो। कल को वो भी बड़े हो कर शादी व्याह कर अपने जीवन में व्यस्थ हो जाओगी तब तक पता नहीं हम दोनो में से कौन रहता है और कौन जाता है। लंबी सांस भरते हुए रवि ने अपने बात कही। .........कल जाने क्या हो कुछ पता नहीं, तो जितना जीना है वो आज ही जी लें। कल किसने देखा।।....... वसुधा रवि की आंखों में देख फिर अपने जीवन को जीने की उम्मीद जागते देख खुश थी। उन्हे भी कहीं न कहीं इस चीज की कमी महसूस होती थी मगर वो इसका जिक्र नहीं करती थी। उन्होंने रवि के हाथों पर हाथ रखते हुए कहा, जितना बच्चों के लिए जीना था जी लिए, पर अब सिर्फ हम एक दूसरे के लिए जिएंगे। रवि ने वसुधा को अपनी बाहों में भरते हुए उन्हें प्यार से गालों पर चूमने की कोशिश की कि तभी फिर बाहर से नन्ही पीहू की आवाज ने वसुधा का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। इस बार वसुधा तो नही खड़ी हुई अपनी जगह से मगर पीहू अंदर आते हुए अपने दादू का हाथ पकड़ कर उन्हे बाहर ले जाते हुए बोली, दादी आप दादू को लेने आए थे और खुद ही बैठ गए। चलिए अब मैं दादू को ले जा रही हूं आप भी आ जाइए। वसुधा भी पीहू और रवि के साथ खाना खाने के लिए बाहर आ गई। जल्दी खाना खत्म करने के बाद दोनो वसुधा और रवि कुछ देर के लिए अकेले बाहर टहलना चाहते थे। जब वो बाहर जाने के लिए तैयार हुए कि तभी फिर नन्हे बच्चों की आवाज़ ने उनके कदम रोक दिए और उनके साथ आने की ज़िद करने लगे। इस बार रवि ने बच्चों को मना करते हुए अंदर जाने को कहा जिस पर सब रोने लगे, वसुधा को ना तो उनका रोना अच्छा लग रहा था ना ही रवि का उतरा चेहरा। संकोच वस वो बच्चों को अंदर अपनी बहुओं के पास ले जाते हुए बोली हम कुछ देर के लिए बाहर टेहलने जा रहे है, रात बहुत हो गई है तो बच्चों को ले जाना ठीक नही तो उन्हे घर में ही रखो। बहुओं को अंदाजा तो हो गया था,इसलिए उन्होंने भी वसुधा के दिल का हाल समझते हुए बच्चों को अपने साथ रखा साथ ही बोली कि, मां जी आप और पापा जी आराम से जाइए, बच्चों को हम देखेंगे और सिर्फ आज ही नहीं। आप का जब भी मन करे आप जा सकते हो जितना हमारा मन करता है घूमने फिरने का हमे अंदाजा है आपका और पापा जी का भी करता होगा। अब से कहीं भी जाने के लिए आपको सोचने की जरूरत नहीं बस हमे बोल दीजिए जिससे हम अपने बच्चों को पहले से समझाने का कोई बहाना ढूंढ सके, वर्ना वो अपने दादी दादू को एक भी पल अकेले नहीं बिताने देंगे। बोलते हुए सभी बहुएं हसने लगी। उनकी बात सुन वसुधा भी हसने लगी कि तभी रवि कि आवाज ने सबके कान खड़े कर दिए और जल्दी जल्दी वसुधा बाहर को जाने लगी। आज वसुधा बहुत खुश और आज़ाद सा महसूस कर रही थी। आज फिर उसे अपनी जवानी के दिन याद आ गए थे। अब वो बिना पल गवाए हर एक लम्हे को रवि के साथ जीना चाहती थी और यही हाल कुछ रवि का भी था। बाहर आते हुए उन्होंने रवि को कसकर गले से लगाते हुए कहा, तेरा मेरा साथ हमेशा रहेगा। चाहे कुछ भी हो अब मैं पीछे नहीं हटूंगी न अपने दिल की सुनने से न ही उन्हें पूरा करने से। इतने सालों बाद वसुधा का यूं अपने आप रवि को गले लगाना रवि को बहुत अच्छा लग रहा था, वो चाहते थे की ये लम्हा यूं ही चलता रहे। दोस्तों,अपनी भावनाओं को किसी के लिए जाहिर करने की कोई सीमा या उमर नही होती है। पति पत्नी का साथ तो उमर भर का होता है पर बच्चों और घर की जिम्मेदारियों में एक ना एक अपनी भावनाओं को मारने पर मजबूर हो जाता है और एक पड़ाव आने पर उसे ये सब अजीब और अटपटा लगने लगता है। बच्चे तो अपने घर के हो जाएंगे पर पति पत्नी ऐसे है जिन्हे सारी उमर एक दूसरे के साथ रहना है। सब साथ छोड़ कर चले जायेंगे पर पति पत्नी हमेशा एक दूसरे के साथ रहते है। इसलिए जितना हो सके समय रहते कदर कर लो और ये जीवन बहुत छोटा है कल क्या हो किसने देखा। आशा करती हूं आपको मेरी पोस्ट अच्छी लगे। धन्यवाद। ❤️जूही❤️

हर उम्र में एक दूसरे का साथ निभाते रहना चाहिए।।

Literature

14
Feb
2024 9:50 AM


          तेरा मेरा साथ रहे....




 सुनो, अब तो कम से कम मेरे लिए थोड़ा समय निकाल लो, हमेशा अपने काम में लगी रहती हो, छोड़ो ये कपड़े तहाना और बंद करो अलमारी।रवि ने वसुधा को पीछे से अपनी बाहों में भरते हुए उनके गुलाबी गालों को चूमते हुए कहा। वसुधा को रवि की ऐसी बातें सुनकर अंदर ही अंदर गुदगुदी सी हो रही थी। उनके दिल की तेज धड़कनों ने उन्हें अपने बीते जमाने याद दिला दिए। जब उनकी रवि से शादी हुई थी और वो नई नवेली दुल्हन बन उनके घर आंगन में आईं थीं। तब भी उसकी धड़कनें रवि के एक प्यार भरे छुअन से ऐसे ही शोर करती थीं जैसे आज कर रही थीं। उसके गुलाबी गाल शर्म से और गुलाबी हो गए थे। आज एक बार फिर अपने पति का यूं खुद पर इतना प्यार देख उसे उन लम्हों को जीने का मन कर रहा था जिन्हें उसने अपने बच्चों और घर जिम्मेदारियों के चलते बहुत पीछे छोड़ दिया था। पर फिर खुद को संभालते हुए उसने बिना ही मुड़े रवि को मना करने की कोशिश की। पर आज तो रवि मानो पूरी ज़िद पे थे। वो वहीं वसुधा के पीछे खड़े उनके पलटने का इंतजार करने लगे। वसुधा जानती थी कि रवि एक बार जिस बात पर अड़ जाते हैं फिर उसे मनवा कर ही दम लेते हैं। कुछ सोच वसुधा अपनी अलमारी बंद कर उनकी तरफ मुड़ी और समझाते हुए उन्हें कहा– मैं आपको कब समय नहीं देती हमेशा आपके साथ रहती हूं हर कदम पर आपके साथ खड़ी रहती हूं। जब आप जो बोलते हो आपकी बात सरांखों पर होती है। फिर भी आप ऐसे बोलते हो। वसुधा ने थोड़ा मुंह लटकते हुए कहा। हां मुझे पता है तुम हमेशा मेरे साथ खड़ी रहती हो मेरी हर बात मानती हो। पर पति पत्नी का क्या बस यही रिश्ता होता है? इसके अलावा और कुछ नही? वसुधा का मुंह ऊपर अपनी तरफ करते हुए रवि ने पूछा। वसुधा ने अंजान बनते हुए कहा और क्या होता है मुझे तो नहीं पता आप ही बता दो। उसके चेहरे ही शरारती हंसी रवि को समझ आ रही थी। उन्होंने और थोड़ा छेड़ते हुए वसुधा को अपनी ओर खींचा और प्यार से निहारते हुए कहा तुम्हे नहीं पता और कोई रिश्ता भी होता है पति पत्नी का। वसुधा जी की नजरें शर्म से नीचे झुक गईं। इससे पहले की रवि जी कुछ करते बाहर से उनकी नन्ही पोती पीहू दादी, दादी की रट लगाते हुए चली आ रही थी। वसुधा जी ने जैसे ही सुना उन्होंने रवि जी को तेज धक्का दे कर खुद से दूर किया साथ ही अपने आप को ऐसे संभाला जैसे कुछ हुआ ही न हो। रवि जी को वसुधा का ये बर्ताव बिलकुल अच्छा नहीं लगा मगर वो बिना कुछ कहे ही वहां से चले गए। वसुधा जी को भी मन ही मन अपने बर्ताव पर गुस्सा था मगर पीहू को देखते हुए उन्होंने भी उन्हे जाने दिया। ***************** वसुधा और रवि जी का भरा पूरा परिवार है। तीन बेटे और बहुएं हैं एक बेटी दामाद है जो दूसरे शहर रहते हैं मगर जब कभी मिलने आ जाते हैं, और सबके बच्चे हैं जिसमे सबसे छोटे बेटे की बेटी है पीहू। क्यूंकि पीहू सबसे छोटी है तो वो सबकी प्यारी है और अपने दादी दादा की तो दुलारी है। उसके बिना तो वसुधा और रवि की सुबह ही नहीं होती ना ही शाम। वो पूरा दिन अपनी दादी को अपने पीछे पीछे घुमाती है। उन्हें नाश्ते से लेकर रात के खाने के लिए भी वही हाथ पकड़ कर लाती है और उन्ही के साथ खाती है। आज भी नन्ही पीहू रात के खाने के लिए अपने दादा दादी को बुलाने गई, जिसमे दादी तो आ गईं मगर दादा का पता नहीं। सब लोग पीहू से उन्हें बुलाने को कहते मगर वो हर बार सबको मना कर देती। थक के वसुधा जी खुद अपने कमरे में गईं जहां रवि जी अपने बेड पर लेटे अपनी नॉवेल पढ़ रहे थे। वसुधा जी ने उनकी नॉवेल साइड में रखते हुए उन्हें खाना खाने का आग्रह किया। साथ ही अपने किये की माफी मांगते हुए उन्होंने फिर उन्हे समझाते हुए कहा, अगर इस उमर में हम ऐसे करेंगे तो बच्चे और घर वाले क्या कहेंगे? देखो तो इन बुड्ढा बुढ़िया को अभी जवानी चढ़ी है।शर्म भी नही आती। वैसे भी जब कभी आप मेरा हाथ सबके सामने पकड़ते हो तो सबकी नजरें सिर्फ हम दोनो पर ही होती हैं।और उनकी नजरें   ही मुझे पानी पानी कर देती है। रवि वसुधा की बात ध्यान से सुनते हुए मुस्कुराने लगे। उन्हे यूं मुस्कुराता देख वसुधा ने अपनी नजरें नीचे कर ली। देखो कोई क्या सोचता है, मुझे फर्क नहीं पड़ता। तुम क्या सोचती हो मुझे उससे मतलब है। आज देखो हमारे बच्चे अपने बच्चों में व्यस्थ है और साथ ही अपना जीवन भी अपनी मर्जी से जी रहे हैं। जब कभी उन्हें जरूरत होती तो उसके लिए हम तो हैं ही। मगर उन्होंने अपने बच्चों या हमारे लिए अपना जीने का तरीका नहीं बदला न ही अपनी भावनाओं को एक दूसरे के लिए खत्म कर रहे हैं। तुम जब मां बनी तो तुमने मां के तो सारे फर्ज़ निभाए मगर पत्नी का धर्म भूल गई। मैं तुम्हे दोष नही देता कि तुम एक अच्छी मां हो पर इन सबके चक्कर में हम अपना ही जीवन जीना भूल गए। सोचा जब बच्चे बड़े हो जायेंगे तब हमे अपनी मर्जी से जीने का मौका मिलेगा मगर तुम तो अब भी व्यस्थ हो। तब बच्चे थे आज नाती पोते में लगी रहती हो। कल को वो भी बड़े हो कर शादी व्याह कर अपने जीवन में व्यस्थ हो जाओगी तब तक पता नहीं हम दोनो में से कौन रहता है और कौन जाता है। लंबी सांस भरते हुए रवि ने अपने बात कही। .........कल जाने क्या हो कुछ पता नहीं, तो जितना जीना है वो आज ही जी लें। कल किसने देखा।।....... वसुधा रवि की आंखों में देख फिर अपने जीवन को जीने की उम्मीद जागते देख खुश थी। उन्हे भी कहीं न कहीं इस चीज की कमी महसूस होती थी मगर वो इसका जिक्र नहीं करती थी। उन्होंने रवि के हाथों पर हाथ रखते हुए कहा, जितना बच्चों के लिए जीना था जी लिए, पर अब सिर्फ हम एक दूसरे के लिए जिएंगे। रवि ने वसुधा को अपनी बाहों में भरते हुए उन्हें प्यार से गालों पर चूमने की कोशिश की कि तभी फिर बाहर से नन्ही पीहू की आवाज ने वसुधा का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। इस बार वसुधा तो नही खड़ी हुई अपनी जगह से मगर पीहू अंदर आते हुए अपने दादू का हाथ पकड़ कर उन्हे बाहर ले जाते हुए बोली, दादी आप दादू को लेने आए थे और खुद ही बैठ गए। चलिए अब मैं दादू को ले जा रही हूं आप भी आ जाइए। वसुधा भी पीहू और रवि के साथ खाना खाने के लिए बाहर आ गई। जल्दी खाना खत्म करने के बाद दोनो वसुधा और रवि कुछ देर के लिए अकेले बाहर टहलना चाहते थे। जब वो बाहर जाने के लिए तैयार हुए कि तभी फिर नन्हे बच्चों की आवाज़ ने उनके कदम रोक दिए और उनके साथ आने की ज़िद करने लगे। इस बार रवि ने बच्चों को मना करते हुए अंदर जाने को कहा जिस पर सब रोने लगे, वसुधा को ना तो उनका रोना अच्छा लग रहा था ना ही रवि का उतरा चेहरा। संकोच वस वो बच्चों को अंदर अपनी बहुओं के पास ले जाते हुए बोली हम कुछ देर के लिए बाहर टेहलने जा रहे है, रात बहुत हो गई है तो बच्चों को ले जाना ठीक नही तो उन्हे घर में ही रखो। बहुओं को अंदाजा तो हो गया था,इसलिए उन्होंने भी वसुधा के दिल का हाल समझते हुए बच्चों को अपने साथ रखा साथ ही बोली कि, मां जी आप और पापा जी आराम से जाइए, बच्चों को हम देखेंगे और सिर्फ आज ही नहीं। आप का जब भी मन करे आप जा सकते हो जितना हमारा मन करता है घूमने फिरने का हमे अंदाजा है आपका और पापा जी का भी करता होगा। अब से कहीं भी जाने के लिए आपको सोचने की जरूरत नहीं बस हमे बोल दीजिए जिससे हम अपने बच्चों को पहले से समझाने का कोई बहाना ढूंढ सके, वर्ना वो अपने दादी दादू को एक भी पल अकेले नहीं बिताने देंगे। बोलते हुए सभी बहुएं हसने लगी। उनकी बात सुन वसुधा भी हसने लगी कि तभी रवि कि आवाज ने सबके कान खड़े कर दिए और जल्दी जल्दी वसुधा बाहर को जाने लगी। आज वसुधा बहुत खुश और आज़ाद सा महसूस कर रही थी। आज फिर उसे अपनी जवानी के दिन याद आ गए थे। अब वो बिना पल गवाए हर एक लम्हे को रवि के साथ जीना चाहती थी और यही हाल कुछ रवि का भी था। बाहर आते हुए उन्होंने रवि को कसकर गले से लगाते हुए कहा, तेरा मेरा साथ हमेशा रहेगा। चाहे कुछ भी हो अब मैं पीछे नहीं हटूंगी न अपने दिल की सुनने से न ही उन्हें पूरा करने से। इतने सालों बाद वसुधा का यूं अपने आप रवि को गले लगाना रवि को बहुत अच्छा लग रहा था, वो चाहते थे की ये लम्हा यूं ही चलता रहे। दोस्तों,अपनी भावनाओं को किसी के लिए जाहिर करने की कोई सीमा या उमर नही होती है। पति पत्नी का साथ तो उमर भर का होता है पर बच्चों और घर की जिम्मेदारियों में एक ना एक अपनी भावनाओं को मारने पर मजबूर हो जाता है और एक पड़ाव आने पर उसे ये सब अजीब और अटपटा लगने लगता है। बच्चे तो अपने घर के हो जाएंगे पर पति पत्नी ऐसे है जिन्हे सारी उमर एक दूसरे के साथ रहना है। सब साथ छोड़ कर चले जायेंगे पर पति पत्नी हमेशा एक दूसरे के साथ रहते है। इसलिए जितना हो सके समय रहते कदर कर लो और ये जीवन बहुत छोटा है कल क्या हो किसने देखा। आशा करती हूं आपको मेरी पोस्ट अच्छी लगे। धन्यवाद। ❤️जूही❤️